Civil Procedure Code 1908 की धारा 10 से 15 in hindi
अहम बात
इस मे आप के लिय सखिने के लिय बहुत कुछ है जो इस प्रकार है | क्या कहती है ये धारा 10 का उद्देश्य न्यायिक प्रणाली में दोहराव और विरोधाभासी निर्णयों से बचना है। अगर कोई वाद (Suit) पहले से ही किसी सक्षम न्यायालय में विचाराधीन है और वही विषय किसी अन्य कोर्ट में फिर से लाया जाता है, तो दूसरे केस की कार्यवाही स्थगित (Stay) कर दी जाती है।
🧾 शर्तें:
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दोनों वादों के पक्षकार समान हों।
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विवाद का विषय और कारण एक जैसा हो।
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पहले से विचाराधीन केस किसी सक्षम कोर्ट में लंबित हो।
उदाहरण से समझो
अगर "राम बनाम श्याम" केस दिल्ली कोर्ट में ज़मीन विवाद पर चल रहा है और वही केस श्याम फिर मुंबई कोर्ट में डाल देता है, तो मुंबई कोर्ट में केस स्थगित किया जाएगा।
CPC की धारा 11 – पूर्वविचारित वाद (Res Judicata)
उद्देश्य:
इस धारा के अनुसार, अगर कोई मुद्दा एक बार किसी अदालत द्वारा निर्णय ले लिया गया है, तो वही पक्ष फिर से उसी मुद्दे पर नया केस नहीं दायर कर सकता।
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Civil Procedure Code, 1908 की धारा 10 से लेकर धारा 15 तक |
प्रमुख तत्व:
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केस पहले किसी सक्षम अदालत में चला हो।
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निर्णय अंतिम और वैध हो।
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दोनों मामलों के पक्षकार और विवाद समान हों।
उदाहरण से समझो
अगर राम और श्याम के बीच ज़मीन विवाद दिल्ली कोर्ट में हल हो चुका है, तो श्याम अब वही विवाद किसी अन्य कोर्ट में नहीं उठा सकता।
CPC की धारा 12 – पुनः वाद दायर करने की रोक (Bar to Further Suit)
क्या कहती है धारा 12 समझो
अगर कोई वादी (Plaintiff) किसी प्रक्रिया के माध्यम से राहत प्राप्त करने में विफल रहता है, तो वह उसी राहत के लिए एक और केस नहीं दायर कर सकता।
आसान उदाहरण से समझो
अगर कोई वादी विशेष निषेधाज्ञा (Injunction) के लिए केस करता है और हार जाता है, तो वह फिर से उसी कारण पर एक और केस नहीं कर सकता।
CPC की धारा 13 – विदेशी निर्णय की बाध्यता (When Foreign Judgment Not Conclusive)
इस धारा का महत्व क्या है
भारत में किसी विदेशी अदालत के निर्णय को तभी मान्यता दी जाएगी जब वह विशिष्ट शर्तों को पूरा करे।
विदेशी निर्णय कब मान्य नहीं होता:
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जब फैसला पक्षपातपूर्ण या अन्यायपूर्ण हो।
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भारतीय कानून के विरुद्ध हो।
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प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ हो।
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न्यायालय की अधिकारिता न हो।
⚖️ उदाहरण:
अगर अमेरिका की कोई कोर्ट बिना राम को सुने फैसला कर दे, तो वह निर्णय भारत में मान्य नहीं होगा।
CPC की धारा 14 – विदेशी निर्णय का प्रमाण (Presumption as to Foreign Judgments)
क्या कहती है यह धारा?
अगर कोई निर्णय विदेशी अदालत से आया है और उसे भारतीय कोर्ट में प्रस्तुत किया जाता है, तो कोर्ट मानकर चलेगी कि वह वैध है — जब तक कोई यह सिद्ध न करे कि वह अवैध है।
ध्यान दें:
यह धारा धारा 13 से जुड़ी हुई है, जो यह तय करती है कि विदेशी निर्णय मान्य है या नहीं।
CPC की धारा 15 – वाद कहाँ दायर किया जाए (Court in Which Suit to Be Instituted)
मूल उद्देश्य:
वाद (Suit) उसी अदालत में दायर किया जाना चाहिए जहां न्यूनतम न्यायिक शक्ति (Lowest Grade Competent Court) हो।
इससे क्या लाभ होता है?
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उच्च न्यायालयों का बोझ कम होता है।
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पक्षकारों को स्थानीय स्तर पर न्याय मिलता है।
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न्याय की प्रक्रिया सरल और सुलभ होती है।
🧾 उदाहरण:
अगर किसी संपत्ति का विवाद 1 लाख रुपये तक का है, तो वह केस सिविल जज जूनियर डिवीजन के पास जाना चाहिए, हाईकोर्ट में नहीं।
सारांश टेबल – CPC धारा 10 से 15
धारा संख्या | शीर्षक | संक्षिप्त विवरण |
---|---|---|
धारा 10 | विचाराधीन वाद | पहले से चल रहे केस की स्थिति में नया केस स्थगित |
धारा 11 | पूर्वविचारित वाद | पहले दिए निर्णय पर दोबारा केस नहीं किया जा सकता |
धारा 12 | पुनः वाद पर रोक | एक बार राहत न मिलने पर दोबारा केस की अनुमति नहीं |
धारा 13 | विदेशी निर्णय की मान्यता | कुछ स्थितियों मेविदेशी निर्णय भारत में मान्य नहीं |
धारा 14 | विदेशी निर्णय का प्रमाण | कोर्ट मान लेती है कि विदेशी निर्णय वैध है |
धारा 15 | उचित न्यायालय में वाद | केस उसी अदालत में दायर हो जहां न्यूनतम शक्ति हो |
निष्कर्ष (Conclusion):
CPC की धारा 10 से 15 तक की धाराएं भारतीय दीवानी न्याय प्रणाली का मूल आधार हैं। ये न सिर्फ न्याय की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करती हैं बल्कि समय, श्रम और दोहराव से बचाने में भी सहायक होती हैं। अगर आप वकील, कानून के छात्र या आम नागरिक हैं, तो इन धाराओं की समझ से आपको अपने अधिकारों और प्रक्रिया की बेहतर जानकारी मिलेगी।
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CPC की धारा 10 से 15 – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
Q1. CPC की धारा 10 क्या है?
उत्तर: धारा 10 विचाराधीन वाद (Stay of Suit) से संबंधित है। अगर एक ही विवाद पहले से किसी सक्षम कोर्ट में लंबित है, तो उसी विषय पर दोबारा केस नहीं चलाया जा सकता और नया केस स्थगित किया जाता है।
Q2. CPC की धारा 11 का क्या उद्देश्य है?
उत्तर: धारा 11 पूर्वविचारित वाद (Res Judicata) की बात करती है। इसका मतलब है कि किसी विषय पर यदि पहले ही कोर्ट फैसला दे चुकी है, तो दोबारा उसी विवाद पर केस दायर नहीं किया जा सकता।
Q3. क्या कोई व्यक्ति बार-बार एक ही विषय पर केस कर सकता है?
उत्तर: नहीं, CPC की धारा 12 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति एक बार किसी विशेष राहत के लिए केस हार जाता है, तो वही राहत दोबारा मांगने के लिए केस दायर नहीं कर सकता।
Q4. क्या भारत में विदेशी अदालत का फैसला मान्य होता है?
उत्तर: हाँ, लेकिन CPC की धारा 13 के तहत केवल उन्हीं विदेशी निर्णयों को भारत में मान्यता दी जाती है जो पक्षपातपूर्ण, अन्यायपूर्ण या भारत के कानून के खिलाफ न हों।
Q5. CPC की धारा 14 क्या कहती है?
उत्तर: धारा 14 के अनुसार, जब कोई विदेशी निर्णय भारतीय कोर्ट में प्रस्तुत किया जाता है, तो यह मान लिया जाता है कि वह वैध है – जब तक कि विपरीत सिद्ध न हो।
Q6. कोई वाद किस न्यायालय में दायर करना चाहिए?
उत्तर: CPC की धारा 15 के अनुसार, वाद वहीं दायर करना चाहिए जहां न्यूनतम न्यायिक शक्ति हो यानी सबसे निचली सक्षम अदालत में। इससे उच्च न्यायालयों पर बोझ कम होता है और आम जनता को स्थानीय स्तर पर न्याय मिलता है।
Q7. अगर दो कोर्ट में एक ही केस चले तो क्या होगा?
उत्तर: ऐसी स्थिति में धारा 10 लागू होगी और दूसरा केस स्थगित (Stay) कर दिया जाएगा जब तक पहला केस खत्म न हो जाए।
Q8. Res Judicata और धारा 11 में क्या अंतर है?
उत्तर: Res Judicata ही धारा 11 का मूल सिद्धांत है। यह सुनिश्चित करता है कि एक विवाद को बार-बार कोर्ट में लाकर न्याय प्रणाली का दुरुपयोग न किया जाए।
Q9. क्या सभी विदेशी निर्णय भारत में मान्य होते हैं?
उत्तर: नहीं, केवल वे विदेशी निर्णय ही मान्य होते हैं जो निष्पक्ष हों, न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप हों, और भारतीय कानून के खिलाफ न हों (धारा 13 में बताया गया है)।
Q10. इन धाराओं को जानना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर: CPC की धारा 10 से 15 भारतीय सिविल प्रक्रिया प्रणाली की रीढ़ हैं। इनके माध्यम से न्याय प्रणाली में पारदर्शिता, न्याय की प्रक्रिया में सरलता और दोहराव से बचाव सुनिश्चित होता है।
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