BNS SECTION 14,15,16

 

🔍 (IPC धारा 76 –BNS SECTION 14 )अगर कोई व्यक्ति क़ानून के अनुसार बाध्य समझकर कुछ करता है, तो वह अपराध नहीं माना जाएगा

📜 आई.पी.सी की  धारा 76 क्या कहती है? BNS SECTION 14 

चलिय सुरू करते है | “कोई भी कार्य, जो किसी व्यक्ति द्वारा इस विश्वास के साथ किया गया हो कि वह क़ानून के अनुसार ऐसा करने के लिए बाध्य है, वह अपराध नहीं माना जाएगा — यदि यह विश्वास तथ्य की गलती के कारण हो, न कि क़ानून की गलती के कारण और वह इसे ईमानदारी से (good faith) करता है।”

🤔 सरल भाषा में समझो 

अगर कोई व्यक्ति तथ्य की गलतफहमी में यह ईमानदारी से मानता है कि वह कानून के तहत कोई काम करने के लिए मजबूर है, और उसी वजह से वह काम करता है — तो वह अपराध नहीं माना जाएगा

🔴 लेकिन ध्यान दें — यह छूट तथ्य की गलती (Mistake of Fact) के कारण मिलती है, क़ानून की गलतफहमी (Mistake of Law) के कारण नहीं।


BNS SECTION 14,15,16



📌 उदाहरण (Illustrations) से समझो 

उदाहरण 1: सैनिक और भीड़ पर गोली चलाना

A, एक सैनिक है। उसके उच्च अधिकारी ने उसे आदेश दिया कि वह भीड़ पर गोली चलाए, और यह आदेश कानून के तहत वैध है।
➡️ चूंकि A ने अपने अधिकारी के वैध आदेश का पालन किया और क़ानून के अनुसार कार्य किया, इसलिए यह अपराध नहीं माना जाएगा।

उदाहरण 2: ग़लत व्यक्ति को गिरफ्तार करना

A, अदालत का एक अधिकारी है। अदालत ने उसे आदेश दिया कि वह Y को गिरफ्तार करे।
A ने पूरी जांच के बाद गलती से Z को Y समझकर गिरफ्तार कर लिया।
➡️ चूंकि यह गलती तथ्य की गलती है (यानी पहचान की गलती), और A ने यह कार्य ईमानदारी से किया, इसलिए यह अपराध नहीं है।



⚖️ इस धारा का उद्देश्य क्या है |

धारा 76 का उद्देश्य यह है कि सच्ची नीयत (Good Faith) और तथ्य की गलतफहमी के कारण किए गए कार्यों को अपराध न माना जाए। इसका मतलब यह नहीं कि कोई व्यक्ति अपने गलत कार्य को कानून की अनजान जानकारी से बचा सकता है। बल्कि, अगर उसने पूरा ध्यान देने के बाद भी किसी तथ्य को गलत समझा और उसी आधार पर कार्य किया, तो उसे छूट मिल सकती है।


🔄 धारा 76 और कानून की गलती:

🔹 अगर कोई व्यक्ति यह गलती से समझता है कि कानून उसे ऐसा करने की अनुमति देता है, लेकिन असल में वह कानून को गलत समझ रहा है, तो यह अपराध होगा
📌 यानी अगर गलती कानून को लेकर है, तो छूट नहीं मिलेगी।


📚 संबंधित कानूनी अवधारणा

  • Good Faith (ईमानदारी): इसका मतलब है कि व्यक्ति ने पूरी सावधानी और ईमानदारी से काम किया है, न कि लापरवाही से।

  • Mistake of Fact vs. Mistake of Law:

    • Mistake of Fact (तथ्य की गलती): जैसे किसी की पहचान में गलती हो जाना।

    • Mistake of Law (कानून की गलती): जैसे कानून को ठीक से न समझ पाना।



📌 निष्कर्ष:

IPC की धारा 76 कहती है कि अगर कोई व्यक्ति यह समझ कर कि वह कानून के अनुसार ऐसा करने के लिए बाध्य है, और वह तथ्य के भ्रम में ईमानदारी से कार्य करता है — तो वह अपराध नहीं माना जाएगा
लेकिन अगर वह कानून को समझने में गलती करता है, तो उसे यह छूट नहीं मिलेगी


याद रखने वाली बात:

“कानून की अज्ञानता माफ नहीं है, लेकिन तथ्य की सच्ची गलतफहमी अगर ईमानदारी से हो, तो माफ की जा सकती है।”







⚖️ IPC धारा 77 – BNS SECTION 15 न्यायिक कार्यवाही में कार्यरत न्यायाधीश द्वारा किया गया कार्य अपराध नहीं होता

📜 धारा 77 क्या कहती है?

“कोई भी ऐसा कार्य जो किसी न्यायाधीश द्वारा न्यायिक रूप से उस शक्ति का प्रयोग करते हुए किया जाए, जो या तो वास्तव में कानून द्वारा उसे प्राप्त है, या जिसे वह ईमानदारी से मानता है कि उसे कानून द्वारा प्राप्त है — वह अपराध नहीं माना जाएगा।”


🤔 आसान भाषा में समझें:

अगर कोई जज (Judge) अपने न्यायिक कर्तव्यों का पालन करते हुए कोई कार्य करता है, और वह यह ईमानदारी से मानता है कि उसके पास वह शक्ति कानून द्वारा दी गई है, तो वह कार्य अपराध नहीं माना जाएगा, चाहे बाद में वो निर्णय गलत ही क्यों न साबित हो।


🧑‍⚖️ उदाहरण से समझो 

उदाहरण: जज द्वारा सज़ा सुनाना

मान लीजिए कि A एक जज है। वह किसी आरोपी को कुछ साक्ष्यों के आधार पर दोषी मानता है और उसे सज़ा सुना देता है।
बाद में उच्च अदालत यह कहती है कि यह निर्णय गलत था।
➡️ लेकिन चूंकि जज A ने यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया का पालन करते हुए और ईमानदारी से लिया था, इसलिए यह अपराध नहीं माना जाएगा


⚖️ इस धारा का उद्देश्य:

IPC की धारा 77 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायाधीश स्वतंत्र रूप से न्याय कर सकें, बिना इस डर के कि अगर उनका निर्णय बाद में गलत निकला, तो उन्हें अपराधी माना जाएगा

यह सुरक्षा उन सभी न्यायिक अधिकारियों को मिलती है जो:

🔹 न्यायिक शक्ति का प्रयोग कर रहे हों
🔹 और ऐसा good faith (सच्ची नीयत) से कर रहे हों


🔄 किन परिस्थितियों में नहीं मिलेगी छूट?

अगर जज:

  • न्यायिक शक्ति का दुरुपयोग करता है

  • जानबूझकर गलत निर्णय देता है

  • या अपनी शक्ति से बाहर जाकर किसी को नुकसान पहुंचाता है
    ➡️ तो उसे इस धारा की संरक्षा नहीं मिलेगी



📚 संबंधित अवधारणाएं

  • Judicial Immunity (न्यायिक संरक्षण): यह सिद्धांत कहता है कि न्यायिक अधिकारियों को उनके न्यायिक कार्यों के लिए कानूनी कार्यवाही से छूट दी जाती है, जब तक वे उसे ईमानदारी से और कानून की मर्यादा में रहकर करते हैं।



📌 निष्कर्ष:

IPC धारा 77 यह स्पष्ट करती है कि:

“न्यायिक कार्य करते हुए यदि कोई जज ईमानदारी से यह मानकर कोई कार्य करता है कि उसके पास वह अधिकार है, तो वह कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।”

यह कानून न्यायिक प्रक्रिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है।


✅ याद रखने लायक पंक्ति:

“गलत निर्णय देना अपराध नहीं है, यदि वह सच्ची नीयत से और न्याय की भावना के साथ दिया गया हो।”



⚖️ IPC धारा 78 – BNS SECTION 16 अदालत के आदेश पर किए गए कार्य अपराध नहीं माने जाएंगे

📜 धारा 78 का मूल पाठ:

“कोई भी कार्य, जो किसी अदालत के निर्णय या आदेश के अनुसार किया गया हो, या जो ऐसे निर्णय/आदेश द्वारा वैध ठहराया गया हो — जब तक कि वह आदेश या निर्णय प्रभावी है — वह अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही अदालत के पास ऐसा निर्णय देने का अधिकार न रहा हो; बशर्ते, वह व्यक्ति जिसने कार्य किया, ईमानदारी से यह विश्वास करता हो कि अदालत को ऐसा अधिकार प्राप्त था।”


🤔 सरल और आसान भाषा में समझें

अगर कोई व्यक्ति अदालत के किसी आदेश या निर्णय का पालन करता है और उस आदेश के अनुसार कोई कार्य करता है, तो वह कार्य अपराध नहीं माना जाएगा
भले ही बाद में यह पता चले कि उस अदालत के पास वह आदेश देने का अधिकार ही नहीं था,
लेकिन शर्त यह है कि उस व्यक्ति ने ईमानदारी से यह विश्वास किया हो कि अदालत को ऐसा करने का अधिकार है।



🧑‍⚖️ उदाहरण से समझें:

उदाहरण: जायदाद की जब्ती

मान लीजिए A एक सरकारी अधिकारी है
उसे अदालत से आदेश मिलता है कि वह किसी व्यक्ति Z की संपत्ति जब्त करे।
A यह कार्य करता है — क्योंकि उसे अदालत ने ऐसा करने को कहा है।

बाद में पता चलता है कि अदालत के पास वह आदेश देने का अधिकार नहीं था (jurisdiction नहीं था)।
➡️ लेकिन चूंकि A ने ईमानदारी से माना कि अदालत के पास अधिकार था और उसने केवल आदेश का पालन किया,
इसलिए A द्वारा की गई कार्यवाही अपराध नहीं मानी जाएगी



⚖️ इस धारा का उद्देश्य:

यह धारा उन लोगों को कानूनी संरक्षण देती है जो अदालत के वैध प्रतीत होने वाले आदेश का पालन कर रहे होते हैं।
इसका उद्देश्य यह है कि अदालतों के आदेशों का पालन करने वाले अधिकारी डर के मारे अपने कार्य में बाधा न डालें


🧠 "अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction)" और ईमानदारी का महत्व:

  • अगर आदेश देने वाली अदालत के पास उस विषय पर निर्णय देने का वास्तविक अधिकार (jurisdiction) नहीं था,
    लेकिन आदेश पालन करने वाले व्यक्ति को इसका पता नहीं था और उसने Good Faith (सच्ची नीयत) से कार्य किया —
    तो उसे अपराधी नहीं माना जाएगा


📌 किन्हें लाभ मिलता है इस धारा से?

  • पुलिस अधिकारी

  • कोर्ट ऑफिसर

  • सरकारी कर्मचारी

  • कोई भी व्यक्ति जो कोर्ट के आदेश का पालन कर रहा हो


❌ किन्हें यह छूट नहीं मिलेगी?

  • जो व्यक्ति जानबूझकर या बिना विश्वास के अदालत के आदेश का दुरुपयोग करता है

  • जिसने ईमानदारी से कार्य नहीं किया हो


🧾 निष्कर्ष:

IPC धारा 78 यह कहती है कि:

“अगर कोई व्यक्ति अदालत के आदेश पर ईमानदारी से कार्य करता है, तो भले ही वह आदेश बाद में अवैध पाया जाए, वह व्यक्ति अपराधी नहीं माना जाएगा।”

यह न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता और कार्य क्षमता बनाए रखने के लिए आवश्यक प्रावधान है।



✅ याद रखिए:

“कोर्ट का आदेश यदि लागू है और व्यक्ति ने ईमानदारी से उस पर अमल किया है, तो वह अपराध नहीं कहा जाएगा — चाहे बाद में उस आदेश की वैधता पर सवाल उठ जाए।”





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