Protection of Women from Domestic Violence (महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा )
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, महिला सुरक्षा कानून, Protection of Women from Domestic Violence Act in Hindi, महिला अधिकार, घरेलू हिंसा से बचाव, घरेलू हिंसा को रोकने के लिय बना या गया एक भारतीय कानून है जो 2005 मे लाया गया था |
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घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, |
प्रस्तावना
DOMESTIC VIOLENCE ACT जेसे भारत में महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए अनेक कानून बनाए गए हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण कानून है "महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम, 2005" (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005)। यह कानून विशेष रूप से उन महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है जो अपने ही परिवार के किसी सदस्य द्वारा हिंसा की शिकार होती हैं।
यह अधिनियम 13 सितंबर, 2005 को पारित हुआ और 26 अक्टूबर, 2006 से पूरे भारत में लागू हो गया। इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, यौन, आर्थिक और मौखिक हिंसा से संरक्षण देना है।
अधिनियम का उद्देश्य
इस कानून का मुख्य उद्देश्य है:
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महिलाओं के संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करना।
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घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को त्वरित और प्रभावी न्याय देना।
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पीड़िता को चिकित्सा, निवास, कानूनी और आर्थिक सहायता प्रदान कराना।
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महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और उनका आत्म-सम्मान बहाल करना।
महत्वपूर्ण परिभाषाएँ (Section 2)
इस अधिनियम के तहत कई महत्वपूर्ण शब्दों की परिभाषाएँ दी गई हैं:
1. पीड़िता (Aggrieved Person):
वह महिला जो घरेलू संबंध में रही हो और जिसने घरेलू हिंसा का अनुभव किया हो।
2. घरेलू संबंध (Domestic Relationship):
दो लोगों के बीच ऐसा संबंध जिसमें वे साथ रहते हों या कभी एक ही घर में रह चुके हों, और वे आपसी खून के रिश्ते, विवाह, रिश्ते के समान विवाह, गोद लेना या संयुक्त परिवार के सदस्य हों।
3. घरेलू हिंसा (Domestic Violence):
कोई भी ऐसा कार्य जो पीड़िता के जीवन, स्वास्थ्य, सुरक्षा, मानसिक स्थिति को नुकसान पहुंचाए। इसमें शारीरिक, मानसिक, मौखिक, यौन और आर्थिक हिंसा शामिल होती है।
4. साझा निवास (Shared Household):
वह घर जिसमें पीड़िता और आरोपी साथ रहते हों, भले ही वह घर किसी एक के नाम पर हो या संयुक्त हो।
5. प्रतिवादी (Respondent):
कोई भी वयस्क पुरुष जो पीड़िता के साथ घरेलू संबंध में रहा हो और जिसके विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई हो। विशेष परिस्थिति में, पति के किसी रिश्तेदार पर भी शिकायत की जा सकती है।
घरेलू हिंसा की परिभाषा (Section 3)
इस अधिनियम के अनुसार, घरेलू हिंसा के अंतर्गत निम्नलिखित कृत्य आते हैं:
(a) शारीरिक हिंसा (Physical Abuse):
मारपीट, चोट पहुँचाना, जान से मारने की धमकी देना आदि।
(b) यौन हिंसा (Sexual Abuse):
पीड़िता की इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाना या यौन रूप से अपमानित करना।
(c) मौखिक एवं मानसिक हिंसा (Verbal & Emotional Abuse):
गालियाँ देना, अपमानित करना, बच्चा न होने पर ताना देना, धमकी देना आदि।
(d) आर्थिक हिंसा (Economic Abuse):
जरूरी आर्थिक संसाधनों से वंचित करना, स्त्रीधन छीनना, घर खर्च न देना, संपत्ति में हिस्सेदारी से रोकना आदि।
पीड़िता को मिलने वाले अधिकार (Reliefs under the Act)
यह अधिनियम पीड़िता को निम्न प्रकार की राहतें दिलाने का प्रावधान करता है:
1. सुरक्षा आदेश (Protection Order):
प्रतिवादी को पीड़िता से दूर रहने, संपर्क न करने और हिंसा न करने का आदेश।
2. आवास आदेश (Residence Order):
पीड़िता को साझा घर में रहने का अधिकार दिलाना, चाहे वह घर प्रतिवादी के नाम ही क्यों न हो।
3. मौद्रिक सहायता (Monetary Relief):
घरेलू हिंसा के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए प्रतिवादी से आर्थिक सहायता दिलाना।
4. मुआवजा आदेश (Compensation Order):
मानसिक पीड़ा, अपमान आदि के लिए प्रतिवादी से मुआवजा दिलवाना।
5. बच्चों की अभिरक्षा (Custody Order):
बच्चों की सुरक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी तय करना।
शिकायत करने की प्रक्रिया
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पीड़िता स्वयं या कोई अन्य व्यक्ति भी सूचना दे सकता है।
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शिकायत Protection Officer, पुलिस स्टेशन, सेवा प्रदाता या सीधे न्यायालय में की जा सकती है।
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शिकायत पर "Domestic Incident Report" बनाई जाती है और आगे की कार्रवाई शुरू होती है।
जिम्मेदार अधिकारी और संस्थाएं
1. Protection Officer:
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राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
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पीड़िता की मदद करता है, रिपोर्ट बनाता है, न्यायालय में आवेदन करता है।
2. Service Provider:
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कानूनी, चिकित्सा, आवासीय, परामर्श सहायता देने वाले संस्थान।
3. पुलिस:
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पीड़िता को उसके अधिकारों के बारे में जानकारी देना।
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आवश्यक होने पर आईपीसी की धारा 498A के तहत मामला दर्ज करना।
4. Shelter Home और Medical Facility:
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पीड़िता को आश्रय और चिकित्सा सुविधा प्रदान करना।
दायित्व और कार्य (Sections 4 to 10)
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धारा 4: कोई भी व्यक्ति यदि घरेलू हिंसा की आशंका जताए, तो वह सूचना दे सकता है। उसे कोई कानूनी दंड नहीं होगा।
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धारा 5: पुलिस, सेवा प्रदाता और मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है कि वे पीड़िता को उसके अधिकारों की जानकारी दें।
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धारा 6-7: शेल्टर होम और मेडिकल सेंटर का कर्तव्य है कि वे पीड़िता की सहायता करें।
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धारा 8-9: Protection Officer की नियुक्ति और कार्य का विवरण।
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धारा 10: सेवा प्रदाताओं की पंजीकरण प्रक्रिया और उनकी भूमिका।
निष्कर्ष
"महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम, 2005" एक बेहद महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कानून है जो महिलाओं को घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ने का कानूनी अधिकार देता है। यह न केवल उन्हें संरक्षण प्रदान करता है, बल्कि आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भी एक मजबूत कदम है।
यह आवश्यक है कि हर महिला अपने अधिकारों को जाने और यदि वह किसी भी प्रकार की हिंसा का शिकार हो, तो इस अधिनियम के तहत उचित कार्रवाई करे। साथ ही, समाज का भी कर्तव्य है कि वह ऐसी महिलाओं को सहायता प्रदान करे और उनके आत्मसम्मान की रक्षा करे।
नोट: यदि आप या आपकी जान-पहचान में कोई महिला घरेलू हिंसा की शिकार है, तो निकटतम थाने, महिला आयोग, Protection Officer या सेवा प्रदाता से संपर्क करें। साथ ही 181 महिला हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करें।
भारत जेसे देश मे महिलाओ पर घरेलू हिंसा होती आई यही लेकिन इस act के आने से घरेलू हिंसा मे कमी आई है लोगों मे इसका दर भी बैठ गया है |लेकिन कुछ जगह ऐसा भी है की कुछ महिलाये इस अधिनियम का गलत फायेदा उठा ती नजर आती है | जिस से न केवल उनकी life खराब होती है बल्कि घरेलू लाइफ भी बनी नहीं रहती |आज के बक्त मे महिलाये ऐसी भी है जो अपने कुछ घटिया लोगों की बातों मे आकार अपनी घरेलू लाइफ खराब कर लेती है जो की | समाज के हर छोटे बड़े वर्ग पर गलत प्रभाब डालती है | जिस से समाज उलट जाता है | और रिश्ते बिखर ने लगते है | लोगों मे विश्वास कम होने लगता है |
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