भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Civil Procedure Code - CPC)
भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Civil Procedure Code - CPC) भारत की एक महत्वपूर्ण विधिक संहिता है, जो सभी नागरिक वादों की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। इस कानून का मुख्य उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को सरल, स्पष्ट और प्रभावी बनाना है ताकि आम नागरिकों को उनके अधिकारों की रक्षा के लिए निष्पक्ष और शीघ्र न्याय प्राप्त हो सके। आइए इस कानून की शुरुआत और धारा 1 और 2 की विस्तृत जानकारी समझते हैं।
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भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Civil Procedure Code - CPC) |
सीपीसी की उत्पत्ति और उद्देश्य:
सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) 1908 में लागू की गई थी और यह 1 जनवरी 1909 से प्रभाव में आई। इस संहिता को लाने का मुख्य उद्देश्य भारत में नागरिक मामलों में समान और एकसमान प्रक्रिया उपलब्ध कराना था। इससे पहले अलग-अलग प्रांतों में अलग नियम चलते थे जिससे न्यायिक प्रणाली में असमानता थी।
इस कानून को विशेष रूप से निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर लागू किया गया:
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नागरिक अधिकारों की सुरक्षा
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वादों की निष्पक्ष सुनवाई
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न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता
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अनावश्यक देरी से बचाव
धारा 1 – संक्षिप्त शीर्षक, प्रारंभ और विस्तार (Short Title, Commencement, and Extent)
प्रमुख बिंदु:
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संक्षिप्त शीर्षक (Short Title): इस अधिनियम को "सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908" कहा जाएगा।
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प्रारंभ (Commencement): यह संहिता 1 जनवरी 1909 से पूरे भारत में लागू हुई।
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क्षेत्र विस्तार (Extent): प्रारंभ में यह संहिता जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं थी, लेकिन 2019 के बाद हुए संवैधानिक संशोधनों और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के बाद इसे वहां भी लागू कर दिया गया है।
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अपवाद (Exceptions): यह संहिता आदिवासी क्षेत्रों और नागालैंड जैसे राज्यों के कुछ क्षेत्रों में लागू नहीं होती, विशेषकर वे क्षेत्र जो 21 जनवरी 1972 से पहले असम के अधीन थे और संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं।
धारा 2 – परिभाषाएँ (Definitions)
धारा 2 में सिविल प्रक्रिया संहिता में प्रयुक्त महत्वपूर्ण शब्दों और अवधारणाओं की परिभाषा दी गई है। ये परिभाषाएँ संहिता की व्याख्या और उसके अनुप्रयोग में सहायक होती हैं।
महत्वपूर्ण परिभाषाएँ:
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Code includes Rules: यह संहिता अपने अंतर्गत सभी नियमों और प्रक्रियाओं को शामिल करती है।
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Decree (डिक्री): अदालत द्वारा दो या अधिक पक्षों के बीच विवाद को लेकर दिया गया अंतिम और अधिकारिक निर्णय।
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Preliminary Decree: जब कोई कार्यवाही बाकी रहती है।
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Final Decree: जब पूरा विवाद सुलझा दिया गया हो।
उदाहरण: यदि अदालत किसी संपत्ति के अधिकार पर फैसला सुनाती है, तो वह डिक्री कहलाती है।
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Decree Holder: वह व्यक्ति जिसके पक्ष में अदालत ने डिक्री सुनाई हो। अगर डिक्री का पालन न हो तो वह उसे लागू कराने के लिए आवेदन दे सकता है।
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District: वह न्यायिक इकाई जो एक जिले की सीमा में कार्य करती है।
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Foreign Court: वह अदालत जो भारत के बाहर स्थित है।
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Foreign Judgment: विदेशी अदालत द्वारा दिया गया निर्णय।
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Government Pleader: सरकारी वकील जो सरकार की ओर से न्यायालय में तर्क प्रस्तुत करता है।
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High Court Jurisdiction: जैसे अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिए कोलकाता उच्च न्यायालय की न्यायिक शक्ति लागू होती है।
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Excepted Sections: कुछ धाराएं जैसे धारा 1, 29, 43, 44, 78, 79 आदि जम्मू-कश्मीर जैसे विशेष क्षेत्रों पर अलग रूप से लागू होती हैं।
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Judge: वह व्यक्ति जो न्यायिक प्रक्रिया का संचालन करता है और निर्णय देता है।
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Judgment: न्यायाधीश द्वारा दिया गया निर्णय जो आदेश या डिक्री को स्पष्ट करता है।
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Judgment Debtor: वह व्यक्ति जिसके खिलाफ अदालत ने फैसला सुनाया है।
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Legal Representative: वह व्यक्ति जो मृतक की संपत्ति पर कानूनी अधिकार रखता है और अदालत में उस अधिकार की रक्षा करता है।
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Profit: वह लाभ जो किसी संपत्ति पर अनधिकृत कब्जे के माध्यम से प्राप्त किया गया हो।
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Movable Property: वह संपत्ति जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाया जा सकता है जैसे वाहन, फसलें आदि।
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Order: अदालत का एक आदेश जो दस्तावेज के रूप में होता है। यह निर्णय से भिन्न होता है।
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Pleader: वह व्यक्ति जो किसी अन्य की ओर से अदालत में पेश होकर मुकदमा लड़ता है।
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Prescribed: जो चीजें या प्रक्रिया नियमों द्वारा पूर्व-निर्धारित की गई हो।
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Public Officer: वे अधिकारी जो जनता की सेवा में कानून द्वारा नियुक्त किए गए हैं, जैसे:
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प्रत्येक न्यायाधीश
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ऑल इंडिया सर्विस के सदस्य
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सेना, नौसेना या वायुसेना के अधीन गजेटेड ऑफिसर
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Rules: वे नियम और फॉर्म जो First Schedule में हैं या धारा 122, 125 के तहत बनाए गए हैं। ये न्यायिक प्रक्रिया को विनियमित करते हैं।
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Signed: दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर जो उसकी वैधता को दर्शाते हैं। कुछ मामलों में न्यायालय के आदेश बिना हस्ताक्षर के भी मान्य हो सकते हैं।
निष्कर्ष:
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 1 और 2, इस कानून की आधारशिला हैं। धारा 1 इसके नाम, प्रभाव और क्षेत्र को स्पष्ट करती है, जबकि धारा 2 महत्वपूर्ण शब्दों की परिभाषा प्रदान कर प्रक्रिया की समझ को सरल बनाती है। यदि आप कानून के छात्र, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं या न्यायिक क्षेत्र में काम कर रहे हैं, तो इन धाराओं की अच्छी समझ आपके लिए अनिवार्य है।
यह लेख CPC की बुनियादी अवधारणाओं को सरल भाषा में समझाने का प्रयास है ताकि कोई भी व्यक्ति इसे आसानी से समझ सके।
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