BNS (बी .एन .एस ) अधिनियम की धार 5 ,6 ,7,8,9

                BNS (बी .एन .एस ) अधिनियम की धार 5, 6 ,7,8,9


भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराएं 5, 6, 7, 8 और हमारे देश की न्याय व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी मानी जाती हैं। ये धाराएं विशेष रूप से दंड की प्रकृतिउसके रूपांतरणकठोरताजुर्माना और एक अपराध से जुड़ी अनेक घटनाओं पर सजा की सीमा तय करने के लिए बनाई गई हैं। इस लेख में हम इन धाराओं को आसान भाषा में एकदम सरलमानवीय और स्पष्ट भाषा में समझने की कोशिश करेंगे तो चलिय शुरु करते है


Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita,2023 की  धारा  के अनुसार  सरकार बिना अपराधी की सहमति  के किसी भी दंड को किसी अन्य दंड मे परिवर्तित  कर सकती है | यह प्रावधान धारा 474 के अनुसार किया जाता है   

Explanations

1. अगर सजा death की है या किसी ऐसे अपराध के लिय है जिस पर केंद्र सरकार का कार्यकारी अधिकार है तो उपयुक्त सरकार केंद्र सरकार होगी  | 

2.  अगर सजा किसी  राज्य के  कार्यकारी  अधिकार से संबंधित कानून  के  लिए है | तो उपयुक्त सरकार  राज्य सरकार होगी | जहां अपराधी को सजा दी गई है | 

 

 धारा 5 – सजा का परिवर्तन (Commutation of Sentence)

 क्या कहती है यह धारा?

धारा 5 के अनुसार, सरकार को यह अधिकार है कि वह किसी अपराधी को दी गई सजा को किसी अन्य प्रकार की सजा में बदल सकती है और इसके लिए अपराधी की सहमति लेना आवश्यक नहीं है।

 उदाहरण:

मान लीजिए किसी व्यक्ति को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है, लेकिन बाद में सरकार उसे उम्रकैद में बदल सकती है।

 उपयुक्त सरकार कौन होगी?

  1. केंद्र सरकार, अगर:
    • अपराध ऐसा हो जिस पर केंद्र सरकार का कार्यकारी अधिकार हो।
    • सजा मृत्युदंड हो।
  2. राज्य सरकार, अगर:
    • अपराध उस राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता हो।
    • सजा उस राज्य के कानून के अंतर्गत दी गई हो।

 उद्देश्य:

इस प्रावधान का मकसद है कि सरकार किसी विशेष परिस्थिति में मानवीयता के आधार पर या सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए सजा को कम या बदल सके। यह न्याय को लचीला और दया से युक्त बनाता है।


धारा 6 – जीवन कारावास बनाम 20 वर्ष की सजा (Life Imprisonment vs 20 Years Imprisonment)

 क्या कहती है यह धारा?

इस धारा में बताया गया है कि जीवन कारावास का मतलब है कि दोषी को अपना पूरा जीवन जेल में बिताना होता है। हालांकि, कुछ मामलों में अदालत इसे 20 वर्षों की कैद के समान मान सकती है।

 दो प्रमुख स्थितियां:

  1. जीवन कारावासदोषी को मौत तक जेल में ही रहना पड़ता है।
  2. 20 साल की कैदकभी-कभी कानून या अदालत यह तय करती है कि दोषी 20 साल जेल में रहकर जीवन कारावास की सजा पूरी कर सकता है।

 उद्देश्य:

कई बार परिस्थितियों के आधार पर जीवन कारावास को 20 वर्षों की निश्चित अवधि के रूप में समझना जरूरी होता है। यह प्रावधान इसी स्पष्टता के लिए है।


धारा 7 – सजा का प्रकार तय करने का अधिकार (Certain Cases of Imprisonment)

 क्या कहती है यह धारा?

इस धारा के अनुसार, अदालत को यह अधिकार प्राप्त है कि वह तय कर सके कि आरोपी को दी जाने वाली सजा किस प्रकार की होगी:

  1. पूर्ण कठोर कारावासजिसमें अपराधी को श्रम करना होता है।
  2. पूर्ण साधारण कारावासजिसमें श्रम नहीं कराना पड़ता।
  3. संयुक्त कारावाससजा का एक भाग कठोर हो और बाकी भाग साधारण।

 उदाहरण:

मान लीजिए किसी अपराधी को 6 महीने की सजा मिली। अदालत यह तय कर सकती है कि पहले तीन महीने कठोर कारावास और शेष तीन महीने साधारण कारावास होंगे।

 उद्देश्य:

इससे अदालत को यह छूट मिलती है कि वह अपराध की गंभीरता और आरोपी की स्थिति को देखते हुए सजा की प्रकृति तय कर सके।

 

धारा 8 – जुर्माना और भुगतान न करने की स्थिति में कारावास (Fine and Default Imprisonment)

 क्या कहती है यह धारा?

अगर किसी अपराधी पर जुर्माना लगाया गया है और वह उसे समय पर नहीं चुका पाता, तो उसे निर्धारित अवधि के लिए जेल भेजा जा सकता है।

 उदाहरण:

मान लीजिए A को ₹1000 का जुर्माना और न भरने की स्थिति में 4 महीने की जेल की सजा सुनाई गई है।

  • स्थिति 1: अगर A पहले महीने में ₹750 भर देता है, तो उसे पहले महीने के अंत में ही रिहा किया जा सकता है।
  • स्थिति 2: अगर A दूसरा या तीसरा महीना पूरा करते हुए जुर्माना चुका देता है, तो वह उसी समय रिहा हो जाएगा।

 उद्देश्य:

यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि गरीब अपराधियों को अनावश्यक रूप से जेल न जाना पड़े और उन्हें समय पर जुर्माना चुकाकर रिहाई का अवसर मिले।


 धारा 9 – एक ही अपराध के कई हिस्सों की सजा की सीमा (Limit of Punishment for Offences Made Up of Several Parts)

 क्या कहती है यह धारा?

अगर कोई अपराध कई हिस्सों में बंटा है और हर हिस्सा अपने आप में एक अपराध है, तो अपराधी को केवल एक ही सजा दी जाएगी – जब तक कि कानून कुछ और न कहे।

 उदाहरण:

मान लीजिए A ने Z को डंडे से 50 बार मारा। हर एक वार कानूनी रूप से एक अलग अपराध हो सकता है। लेकिन अदालत A को सभी वारों के लिए एक ही सजा देगी, जैसे – 1 साल की जेल, न कि 50 साल की सजा।

उद्देश्य:

इस प्रावधान का उद्देश्य न्याय में संतुलन बनाए रखना है ताकि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए बार-बार सजा न दी जाए। इससे अत्यधिक कठोरता से बचा जा सकता है।


निष्कर्ष:

धाराएं 5 से 9 तक भारतीय न्याय संहिता का एक मजबूत ढांचा प्रस्तुत करती हैं, जो न्याय को अधिक मानवीय, व्यावहारिक और लचीला बनाता है। इन धाराओं से हमें यह सीख मिलती है:

  • धारा 5: सजा में परिवर्तन का अधिकार सरकार के पास है।
  • धारा 6: जीवन कारावास और 20 वर्षों की सजा की प्रकृति स्पष्ट होती है।
  • धारा 7: अदालत को सजा की प्रकृति तय करने की छूट मिलती है।
  • धारा 8: जुर्माना न भरने पर कारावास की सजा तय की जाती है।
  • धारा 9: एक ही अपराध के कई हिस्सों पर सिर्फ एक ही सजा लागू होती है।

इन धाराओं से यह सिद्ध होता है कि भारतीय न्याय प्रणाली केवल दंड देने के लिए नहीं है, बल्कि उसमें दया, समझदारी और सुधार की गुंजाइश भी है।

यदि इन प्रावधानों को सही तरीके से लागू किया जाए तो न केवल अपराधियों को सुधार का अवसर मिलता है, बल्कि समाज को एक न्यायपूर्ण और संतुलित व्यवस्था भी प्राप्त होती है।

 

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